कि हर मुलाक़ात तुम सी क्यूँ लगती है,
जैसे रह गई कोई बात अनकही.
कैसे बताऊँ मैं तुम से, ये कह दूं
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
जैसे रह गई कोई बात अनकही.
कैसे बताऊँ मैं तुम से, ये कह दूं
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
कि ये प्रीत का बंधन है कैसा,
एक रिश्ता ये कि जिस का कोई नाम नहीं.
क्यूँ नहीं तुम को अपना कह पाता,
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
एक रिश्ता ये कि जिस का कोई नाम नहीं.
क्यूँ नहीं तुम को अपना कह पाता,
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
कि आँखों के दर्पण में बसती हो यूँ,
एक आंसू बन पलकों में छुप जाती.
एक मोती की तरह संजो के रखा है,
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
एक आंसू बन पलकों में छुप जाती.
एक मोती की तरह संजो के रखा है,
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
कि एक सपना हो तुम कुछ ऐसा,
जो टूट जाता है हर सुबह अधूरा ही.
ख्वाब में भी पूरी न हो
कि तुम हो मेरी एक ख्वाहिश अधूरी सी.
भाव प्रवण कविता.
ReplyDelete@ raviratlami -
ReplyDeletethanks a lot sir :) keep visiting....
Its nice but doesnot fulfil my expectations. You have delivered a lot better than this.
ReplyDeletence ne..bt u can wrte better den dis? keep it up..
ReplyDelete@ trishala -
ReplyDeletethanks a lot for the comment... i'll try my best to live upto ur expectations.... ;)
@ shruti -
ReplyDeletethank u.... but i didnt understand whether it was a statement or u raised a doubt on my abilities.... lol