Saturday, August 22, 2009

Zaroor tha....

उसकी आँखों का, मेरे दिल का कसूर था
मैं उसका सही, वो मेरा प्यार ज़रूर था

वो मुझ से दूर थी, मैं उस से दूर था
कुछ दूर था, तो वो नज़र का कसूर था

कोई प्यार तो मेरे दिल में ज़रूर था
शायद उसे ना सही, पर मुझे ज़रूर था

बात जब हुई, तो कुछ था
पर जब मिली नज़रें, तो दिल को कुछ गुरूर था

अब उनकी आँखों को क्या करें बयाँ
हम पर भी छा गया इतना सुरूर था

फ़िर छाई ज़िन्दगी में बहार ऐसी
कि जिंदा रहने के लिए उनके करीब आना ज़रूर था


6 comments:

  1. न उसकी आँखों का, न मेरे दिल का कसूर था
    मैं उसका न सही, वो मेरा प्यार ज़रूर था
    superb, truly amazing.......

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  2. @ rashmi -
    thanks a lot :)

    nw dis was a real quick comment.... :P

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  3. words falling short to appreciae dis poem... yes. i can jus say dat its awesome.

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  4. @ trishala -
    thanks a lot.... i'm humbled by ur words.....

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  5. heart touchng ne...excellent wrk...
    keep it up..keep wrtng sch poems..dey are js fantastic....

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