Wednesday, January 27, 2010

Angel





I thought I saw an angel,
I didn't mean to stare.
I had pictured them differently,
till I saw you standing there.


You may not have a halo,
but you certainly have that grace.
I can tell that you're an angel,
from that look on your face.


For only angels shine that way.
You have this heart convinced.
I know you're heaven sent,
even you don't have a set of wings.


For only God would send a gift
so good and sweet and kind.
Don't try to tell me otherwise,
I'll never change my mind.


You may think that I'm flirting,
but I see through my eyes of love.
My heart is convinced I got a gift,
and you're my angel from above.

Friday, January 22, 2010

Ek Mulaqaat

एक दिन मुझे एक सपना आया. वैसे तो मुझे सपने आते ही नहीं, लेकिन न जाने ये सपना कहाँ से भूले भटके आ गया. खैर, अब आ ही गया, तो देख भी लिया. वैसे अगर मैं अपना ये सपना बयाँ ना ही करुँ तो ठीक रहेगा, क्यों कि इस सपने में जीवन की जो कडवी हकीकत मैंने देखी है, वो शायद ही कोई देखना चाहेगा.

तो सपने में हुआ यूँ, कि एक 20-22 साल का लड़का - वो अब लड़का नहीं था, केवल एक शरीर था. यानी वो लड़का अब मर चुका था. वो रात में नींद में ऐसा सोया कि फिर जागा ही नहीं. घर वाले, दोस्त, रिश्तेदार, पडोसी, जान-पहचान वाले - लगभग सभी की आँखें नम थी. सब भगवान की निष्ठुरता को कोस रहे थे. इतनी छोटी उमर में अपने पास बुला कर भगवान की क्रूरता साफ़ झलक रही थी. सब लोग उस लड़के के साथ बिताए पलों को याद कर रहे थे. उसकी तारीफ किये जा रहे थे. लोगों को काफी उम्मीदें थी इस से.

उस लड़के की आत्मा ये सब देख रही थी. शायद यमराज कहीं ट्राफिक  में फंस गए थे. उसके प्राण तो यमराज ने शायद ऑनलाइन ही हर लिए थे लेकिन डिलीवरी लेने तो उन्हें खुद ही आना था. क्यों कि यमलोक की टेक्नोलोजी पृथ्वी से कुछ 10-15 साल पीछे थी. वहां इ-बे (e-bay) जैसा कुछ इजाद नहीं हुआ था. और पृथ्वी के कोरियर वाले भी यमलोक में डिलीवरी नहीं देते थे.

उस लड़के की रूह अन्दर ही अन्दर घुटे जा रही थी. उससे उसके घरवालों और दोस्तों का दर्द देखा नहीं जा रहा था. और कुछ लोगों का बनावटी दुख देख के उन्हें भी साथ में यमलोक ले जाने की इच्छा हो रही थी. अब तक दुख जताने वालों की भीड़ काफी बढ़ चुकी थी. दूसरी तरफ कुछ लोग उसकी लाश को अंतिम संस्कार के लिए जल्दी ले जाने को कह रहे थे. भई, अब ऐसा ही होता है. किसी के पास टाइम नहीं है. बन्दा मरा नहीं कि जल्दी उसे जला आने की होती है.

यहाँ चर्चा चल ही रही थी कि अचानक एक बेहद खूबसूरत परी जैसी लड़की रोती हुई भीड़ को चीर कर अन्दर आती है. उसके चेहरे पर तो जैसे आंसुओं की धार बह रही हो. उसके मुंह से सिर्फ सिसकियाँ ही निकल रही है. शब्दों का तो जैसे अकाल पड़ गया हो. खूबसूरत इतनी कि जैसे कोई अप्सरा हो. बेदाग़ चेहरा जैसे दूध से धुला हो. रोते हुए भी वो इतनी सुन्दर लग रही थी, हँसते हुए तो वो ग़ज़ब ही ढाती होगी.

वहां मौजूद सभी लोग हैरान थे कि ये लड़की इतना क्यों रो रही है? इसे इतना दुख क्यों हो रहा है? फिर जितने मुंह उतनी बातें. तरह तरह से लोग आकलन करने लगे. तरह तरह की बातें होने लगी. लोग अपनी ही कहानियां बनाने में मशगूल हो गए. चंद मिनट पहले जो लोग उस लड़के की तारीफों के पुल बाँध रहे थे, अब वो ही लोग उस लड़के और लड़की के चरित्र पर उंगलियाँ उठा रहे थे. कुछ लोग तो ऐसे मौके का मज़ा लूटने में लग गए. कुछ लोग तो यहाँ तक कहने लगे कि लड़के के कैरेक्टर पर पहले से ही शक था.

वह लड़का वहीँ पास में बैठा यमराज का इंतज़ार करते हुए ये सब नज़ारा देख रहा था. एक तरफ तो उसे उन लोगों पे गुस्सा आ रहा था. मन तो कर रहा था कि जा के एक एक के गाल पर तमाचा जड़ दे, लेकिन ये उसके बस के बाहर था. दूसरी तरफ उस लड़की को देख कर उससे उसका दुख भी सहन नहीं हो रहा था. पर वो करे तो क्या करे?

खैर, लड़के के घरवालों के पूछने पर वो लड़की रोते हुए बहुत धीरे से बोली, "ये लड़का मुझसे बहुत प्यार करता था. शायद मेरे नसीब में ख़ुशी लिखी ही नहीं है."

इतना सुनना था कि घर में कोहराम मच गया. उसके घरवालों को तो जैसे सांप ही सूंघ गया हो. ये सच्चाई उस लड़के के दोस्तों से छिपी नहीं थी, लेकिन ऐसे नाज़ुक मौके पर सबने चुप रहना ही मुनासिब समझा. किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि जा के उस लड़की का साथ दे.

लड़के के घरवाले अपनी इज्ज़त के डर से कहने लगे, "ये लड़की झूठ बोल रही है. सरासर गलत इलज़ाम लगा रही है." लेकिन उस लड़की के आंसू तो झूठे नहीं थे. उसे कैसे झुठलाते सब लोग?

अब तो वहां ज़बरदस्त तमाशा खड़ा हो गया था - बिलकुल वैसे ही जैसे एकता कपूर के सीरियल में होता है. अब तक लोग काफी तरह की बातें बनाकर उस लड़की को ज़लील कर चुके थे.

थोड़ी देर बाद कुछ हिम्मत जुटा कर वो लड़की बोली, "अभी कुछ ही दिन पहले इसने मुझसे अपने प्यार का इज़हार किया था. पर मैं नादान उसे सिर्फ दोस्ती समझती रही. लेकिन आज मुझे अपनी उस भूल का एहसास हो रहा था. मुझे भी लगा कि मैं भी इससे प्यार करती हूँ. आज मैं भी इससे अपने दिल कि बात कहने ही वाली थी. लेकिन भगवान से मेरी ख़ुशी बर्दाश्त नहीं हुई." रोते रोते इतना कह कर वो बेहोश हो गयी.

लोग फिर आपस में कानाफूसी करने में लग गए. इतने में यमराज भी आ गए. लड़के को लगा कि अब तो उसे जाना ही होगा. इधर, यमराज बड़े चिढ़े हुए थे, कह रहे थे, "लगता है ये चित्रगुप्त भी अब बूढा हो गया है. न जाने कौन सा पता दे दिया. वहाँ तो कोई मरा ही नहीं है. और मातम तो यहाँ हो रहा है."

फिर हाथ में एक फोटो लिए किसी को ढूँढने में लग गए. फोटो वाले चेहरे से न जाने किसका चेहरा मिलाने की कोशिश कर रहे थे. वो लड़का अब उठ के यमराज के पास आया और बोला, "यमराज जी, चलिए. मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता."

यमराज चौंककर बोले, "ओ हैलो ! कहाँ चलो? बड़ी जल्दी हो रही है तुम्हे." लड़का कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था. वो सिर्फ हाथ जोड़ कर चलने का इशारा करने लगा.


तभी एकाएक यमराज को ख़याल आया. ये लड़का कोई जीवित इंसान नहीं है. क्यों कि जीवित इंसान यमराज को नहीं देख सकते. यानी ये लड़का नहीं बल्कि कोई आत्मा है. अब तक यमराज लगभग पूरा वाकया समझ चुके थे.

साइड में जा कर उन्होंने फटाफट  चित्रगुप्त को कॉल किया. पहले तो चार-पांच गालियाँ दी. फिर बोले, "अबे ओ चित्रगुप्त ! तुमने या तो फोटो गलत दिया है या पता. जल्दी से चेक कर के बताओ किसको लाना है."

दो मिनट बाद चित्रगुप्त बोला, "यमराज ! आपके पास जो पता है वो भी सही है और फोटो भी. वो ऑनलाइन प्राण हरने में मुझसे एक छोटी सी भूल हो गयी है. गलत आदमी के प्राण हर लिए है मैंने. मैं अभी इसे अन-डू (undo) करता हूँ."

यमराज तैश में आ कर बोले, "जब तुम्हे पता है तुम्हें जल्दी चढ़ जाती है तो कम पीनी चाहिए ना. पार्टी में मुफ्त में मिली तो इसका मतलब ये नहीं कि पीते रहो. कोई लिमिट तो होनी चाहिए."

फिर फोन रख कर यमराज उस लड़के के पास गए और बोले, "गलती के लिए क्षमा चाहता हूँ. वो चित्रगुप्त ने नशे में गलती से तुम्हारे प्राण हर लिए. इस भूल के लिए मैं तहेदिल से माफ़ी मांगता हूँ और तुम्हारे प्राण भी तुम्हारे शरीर में वापस डाल देता हूँ."

अब गुस्सा होने कि बारी उस लड़के की थी. वो बोला, "लेकिन ये जो मुफ्त का तमाशा हो गया वो? उसे कौन ठीक करेगा? इस लड़की की इज्ज़त की तो धज्जियाँ उड़ गयी न. उसका क्या?" इच्छा तो हो रही थी कि यमराज को कोर्ट में घसीट ले और घोर लापरवाही और मानहानि का दावा ठोंक ले. लेकिन पृथ्वी लोक कि अदालतों में यमराज पर केस नहीं होते.

यमराज बोले, "अपनी इस गलती का प्रायश्चित करने के लिए मैं इतना कर सकता हूँ कि मैं जीवन चक्र को चार घंटे पीछे कर देता हूँ."

इस पर वो लड़का बोला, "लेकिन एक शर्त है यमराज जी. ये जो कुछ भी हुआ, मुझे सब याद रहना चाहिए."

यमराज बोले, "तथास्तु !" और गायब हो गए.

इसी के साथ सारा ताम-झाम भी गायब हो गया. वो लड़का अपने बिस्तर पर सो रहा था. कुछ देर से उसकी नींद खुली. काफी खुश था वो. आखिर आज उसे अपना प्यार जो मिलने वाला था. उसके चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक थी. वो उठा और तैयार होने चला गया... अपने जीवन की एक हसीन मुलाक़ात के लिए...

Friday, January 15, 2010

Frustration of a sports lover !

Post-Independence, the only thing that we have done with keen interest is to ruin all our national symbols. Be it national bird, national animal, national monuments, and more recently the national game !

Poachers are killing peacocks and we stay silent. The number of tigers are decreasing day by day. I need not highlight on the condition of the national monuments. And the situation in hockey is not hidden from anyone.

Hockey players had to go on a strike to get their dues back. Just before the world cup, the national hockey team had to strike to get their demands met. And the government is still silent.


Hungry warriors never won any battle. And hungry warriors have always revolted. So did the hockey players. I stand with them. The stand they took is totally justified. I don't understand one simple thing. The government has NO money to save what they call their NATIONAL game? Isn't it shameful that the players who represent the country on the international level are not paid and the bureaucrats enjoy on their expense. Wow ! Welcome to India.

Every sports body is dominated by politicians. Lets take the example of Mr Sharad Pawar. Sorry Mr Pawar, but you being the boss (indirectly) of the richest sports body of the nation had to bear the brunt ! So, Mr Pawar is indirectly the boss of the BCCI. He's set to be the next President of the ICC. So he can not devote his entire time to one thing. He has to take care of his party matters. He has to take care of the BCCI. He has to take care of the Agriculture ministry, So while multitasking, one makes mistakes. And so did Mr Sharad Pawar. He has been in foot-in-mouth situations quite a few times. Recently his 'I-am-not-an-astrologer' remark on the rising prices of commodities had made an impact.

There are numerous examples of politicians in sports. To some extent, its good. But as it is said in Hindi : "अति हर चीज़ की बुरी होती है... ". So my dear netajis, since you guys can't devote your VALUABLE time to the sport, please back off ! And let the former sportsmen come forward and govern the sport. After all, its their cup of tea ! You shouldn't be poking your nose everywhere.

Mr Pawar should either become a full time sports administrator or a full time politician. So that either cricket is benefited or the common man is benefited. You know what I mean. Even the Prime Minister should tell him to concentrate on the ministry to reduce the price of per head thaali of a common man.

I'd like to quote another famous Hindi line over here :
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा...
Actually, this line suits the current scenario. Isn't it?

There was a time when India was numero uno in hockey. There was a time when  players like Major Dhyan Chand were national heroes. But today we ponder over it and only say "there WAS a time". Today is the time when hockey is doomed.

I'll ask you all a few simple questions :
  • How many hockey players' names and faces do you remember?
  • Who's the current captain of the national hockey team?
  • Name the last five hockey captains of India.
  • When did you last watched a full hockey match? Okay.. add the words "on TV" to this question.
Well, I know 99.99% of the readers won't be able to answer it. But if I replace the word "hockey" with "cricket", everyone would be ready with their answers. There lies the difference. We keenly watch cricket, but we don't have any interest in hockey.

We roared when we watched Indian women's team winning the world cup in "Chak De ! India". But we forgot. And we moved on ! Even Shah Rukh Khan forgot. He went on to buy a team in the IPL, just because he saw his profits there. Why just blame him. Everyone's selfish. You. Me. Everyone !

Well... I got carried away. Sorry for that. But all I meant to say is that its high time. We must wake up ! The least we can do is watch the sport ! And we must cheer our national hockey team.

The hockey players are not beggars. Let them get what they deserve ! If we can't respect our own nation, don't expect others to do the same.

CHAK DE !

Thursday, January 7, 2010

You and Me!!

Following is a poem i wrote for my didi on her b'day last year. I am posting it because this one is really close to my heart.


Tonight, I sit,
Peacefully,
Thinking about you and me!!



I think of the times,
When we laughed together,
And the world felt isolated,
Cause we had our secret jokes,
Only between you and me!!








I take pride of the times,
Accompanied by poignant memories,
How we stood by each other,
And took the world by surprise,
Cause we shared faith,
The trust between you and me!!




I enjoy the most now,
When I remember our petty fights,
We yelled like one hated the other,
But always seen together,
Cause the world could not see,
The invisible bond between you and me!!





I chuckle remembering all the misdeeds,
Done by one but we shared the blame for,
Cause there is an unwritten rule,
An agreement between you and me!!






Now, I make a wish…
You get the best,
And I wish the best for me…
Hope together we keep fooling the world,
And remain the same
YOU AND ME!!

Sunday, January 3, 2010

The Real Idiot !

'Shut Up !!'

This is what Mr Vidhu Vinod Chopra told one of the journalists at a press conference. For those who don't know the details, Mr Chopra, the producer of much-hyped and successful film '3 Idiots'. And the press conference was held to clariffy the producer's stand on the controversy regarding the credit due to Chetan Bhagat, on whose novel 'Five Point Someone' the film is based.

I have seen the film AND I have read the novel. So as per Chetan, I can comment on the issue. To start with, I was shocked to find the mention of Chetan Bhagat and FPS missing in the credit line. Having seen the whole movie, I can say that 3I is largely (and not loosely, as claimed by the producers) based on FPS - roughly 65-70 per cent. And as Chetan says since the producers were contractually bound to give credit to him, they put the name in the closing credits and that too in such a way that most of the people miss it. (I myself missed it and so did Chetan's mother).

So, the controversy is not over credit, its over the 'placement' of credit. In my view, the way the producers gave credit to Chetan is almost the same as not giving the credit at all. 'Coz most of the viewers missed it. For those who have read FPS, its not difficult to guess that 3I storyline is an adapted version of FPS. But what about those who haven't read FPS? They will obviously think that the story and screenplay belong to Raju Hirani and some Abhijat Joshi. And that's what Chetan was fighting for. And he was fighting this battle on 'twitter', on his blog, and at a later stage on TV news channels.

You might have noticed that I have used the word 'was' in the last two lines of the last paragraph. It is actually 'was', 'coz at this point of time, Chetan Bhagat is considering of compromise with the producers.

It is clear and evident that the 3I story is an adapted version of Chetan Bhagat's bestseller novel FPS. And creating a furore over 'moral rights of the author', the story being adapted from FPS or not, Vidhu Vinod Chopra lambasting a journo, Aamir Khan almost abusing Chetan Bhagat, more importantly Chetan Bhagat discussing the issue publicly and not going to the court, and then all of a sudden all of them getting back to compromise. Now, something seems fishy ! Was it an attempt to generate publicity? I had no idea that if this is true, people like Vidhu Vinod Chopra, Raju Hirani, Aamir Khan and even Chetan Bhagat can stoop this low just for the sake of publicity of an already hit film !

I can not make a comment on what's true and what's not. I am not taking either side. I'm just expressing my views over the issue.

In the end, I feel that none of the three - Vidhu Vinod Chopra, Raju Hirani, Chetan Bhagat - is an idiot. The real idiot is us - the Indian janta... the audience !

So will you still say 'Better be an Idiot than a stupid?'